Thursday, September 8, 2011

For a very dear friend :)


वो नकाब ए रुख में माहताब लिए चलते है
हम अपने सीने में इजतिराब लिए चलते है

लाख समझाया दिल को, कदमो को  रोका भी
कूचा-ए-यार को मगर अपने आप लिए चलते है

तुझे पाने की  हसरत माना सराब ही सही
पर आँखों में तेरे ही ख्वाब लिए चलते है

दास्ताँ-ए-उल्फत महज़ इतनी सी है ए दोस्त
वोह तीर-ए-निगाह हम जिगर चाक लिए चलते है

कुछ तो इश्क में आफताब से जलते है
कुछ पलकों पर आब लिए चलते है

मिलते कहाँ है प्यार रोज़ ऐसे दीवाने
जूनून रगों में, इरादों में इल्तिहाब लिए चलते है